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Chaitra Navratri 2021 and Date wise name of 9 days

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सनातन धर्म में चैत्र और आश्विन नवरात्रि ही मुख्य माने जाते हैं, इनमें जहां चैत्र नवरात्रि से हिंदुओं का नववर्ष शुरु होता है, वहीं आश्विन / शारदीय नवरात्रि का भी बहुत महत्व माना गया है। इन नवरात्रियों की शुरुआत चैत्र और आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को होता है। ये प्रतिपदा ‘सम्मुखी’ शुभ मानी गई हैं।

यूं तो नवरात्रि साल में चार बार आती है। जिसमें चैत्र और आश्विन की नवरात्रियों का विशेष महत्व है, जबकि दो अन्य नवरात्रियों को गुप्त नवरात्रि माना जाता है। चैत्र नवरात्रि से ही विक्रम संवत की शुरुआत होती है, इस बार ये पर्व 13 अप्रैल, मंगलावार से शुरु हो रहा है।

वहीं इस बार खास बात ये भी है कि सप्ताह के दिनों में जहां शक्ति की देवी का मंगलवार के दिन पूजन का विधान विशेष माना गया है, वहीं इस बार शक्ति की देवी मां दुर्गा का ये पर्व ही मंगलवार से शुरू हो रहा है।

माना जाता है कि चैत्र नवारात्रि के दिनों में प्रकृति से एक विशेष तरह की शक्ति निकलती है। इस शक्ति को ग्रहण करने के लिए इन दिनों में शक्ति पूजा के विभिन्न स्वरूप यानि नवदुर्गा की पूजा का विधान है।

इसमें शक्ति की देवी माता दुर्गा के नौ शक्ति स्वरूपों की पूजा अलग-अलग दिन की जाती है। पहले दिन मां के शैलपुत्री स्वरुप की उपासना की जाती है। इस दिन से कई देवी मां के भक्त नौ दिनों तक या दो दिन का उपवास रखते हैं।

नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है, जिसे कलश स्थापना भी कहते हैं। पहले दिन घटस्थापना का विशेष महत्व होता है। प्रतिपदा तिथि पर कलश स्थापना के साथ ही नौ दिनों तक चलने वाला नवरात्रि का पर्व आरंभ हो जाता है। पहले दिन में विधि-विधान से घटस्थापना करते हुए भगवान गणेश की वंदना के साथ माता के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा, आरती और भजन किया जाता है।

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मान्यता है कि नवरात्रि के दौरान शक्ति की देवी माता दुर्गा पृथ्वी पर नौ दिनों तक वास करतीं हैं और अपने भक्तों की साधना से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद देती हैं। वहीं ये भी माना जाता है कि भगवान राम ने भी लंका पर चढ़ाई करने से पहले रावण संग युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए देवी की साधना की थी।

इसके अलावा यह भी माना जाता है कि आम दिनों के मुकाबले नवरात्रि पर देवी दुर्गा की साधना और पूजा-पाठ करने से पूजा का कई गुना ज्यादा फल की प्राप्ति होती है। नवरात्रि पर ही विवाह को छोड़कर, खरीदारी सहित सभी तरह के शुभ कार्यों की शुरुआत करना बेहद ही शुभ माना जाता है। नवरात्रि के दौरान सभी शक्तिपीठों पर विशेष आयोजन किए जाते हैं, जहां पर बड़ी संख्या में लोग माता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनके दरबार में पहुंचते हैं।

आइये जानते हैं शक्ति की देवी मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों, पूजा विधि, मंत्र, आशीर्वाद व उन्हें लगने वाले भोग के बारे में…

13 अप्रैल- नवरात्रि प्रतिपदा-
पहले दिन मां शैलपुत्री : आदि शक्ति के इस रूप के शैलराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। शैलपुत्री नंदी नाम के वृषभ पर सवार होती हैं और इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है।

मां शैलपुत्री पूजा विधि : मां शैलपुत्री की तस्वीर स्थापित करें और उसके नीचे लकडी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं। इसके ऊपर केसर से शं लिखें और उसके ऊपर मनोकामना पूर्ति गुटिका रखें। इसके बाद हाथ में लाल पुष्प लेकर शैलपुत्री देवी का ध्यान करें। और मंत्र बोलें-‘ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम:।’

मां शैलपुत्री का विशेष मंत्र – ‘ऊँ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।’

मां शैलपुत्री का भोग : मां शैलपुत्री के चरणों में गाय का घी अर्पित करने से भक्तों को आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है और उनका मन एवं शरीर दोनों ही निरोगी रहता है।

आशीर्वाद : हर तरह की बीमारी दूर करतीं हैं।

14 अप्रैल- नवरात्रि द्वितीया-
दूसरा (द्वितीया) रूप- मां ब्रह्मचारिणी : भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इस देवी को तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया। उन्हें त्याग और तपस्या की देवी माना जाता है। मां ब्रह्मचारिणी के धवल वस्त्र हैं। उनके दाएं हाथ में अष्टदल की जपमाला और बाएं हाथ में कमंडल सुशोभित है।

मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से द्वितीय शक्ति देवी ब्रह्मचारिणी का है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली अर्थात तप का आचरण करने वाली मां ब्रह्मचारिणी।

देवी ब्रह्मचारिणी ( Maa brahmacharini ) के दाहिने हाथ में अक्ष माला है और बाएं हाथ में कमण्डल होता है। इस देवी के कई अन्य नाम हैं जैसे तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा। शास्त्रों में मां के एक हर स्वरूप की कथा का महत्व बताया गया है। मां ब्रह्मचारिणी की कथा जीवन के कठिन क्षणों में भक्तों को सहारा देती है।

पूजा विधि : देवी ब्रह्मचारिणी जी की पूजा का विधान इस प्रकार है, सर्वप्रथम आपने जिन देवी-देवताओ एवं गणों व योगिनियों को कलश में आमत्रित किया है। उनकी फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करें उन्हें दूध, दही, शर्करा, घृत, व मधु से स्नान करायें व देवी को जो कुछ भी प्रसाद अर्पित कर रहे हैं उसमें से एक अंश इन्हें भी अर्पण करें।

विशेष मंत्र – दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू ।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ॥

मां का भोग : मां के इस स्वरुप को मिश्री, चीनी और पंचामृत का भोग लगाना चाहिए।

आशीर्वाद : लंबी आयु व सौभाग्य का वरदान देतीं हैं।

15 अप्रैल- नवरात्रि तृतीया-
तीसरा (तृतीया) रूप – मां चंद्रघंटा : मां के माथे पर घंटे के आकार में अर्धचंद्र है। जिसके चलते इनका यह नाम पड़ा मां का यह रूप बहुत शांतिदायक है। इनके पूजन से मन को शांति की प्राप्ति होती है। ये भक्त को निर्भय कर देती हैं। देवी का स्मरण जीवन का कल्याण करता है।

मां की पूजा विधि : माता की चौकी (बाजोट) पर माता चंद्रघंटा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसकेबाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टीके घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। इसके बाद पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारामां चंद्रघंटा सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें।

इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधितद्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्रपुष्पांजलि आदि करें। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।

विशेष मंत्र – पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥

मां का भोग : मां चंद्रघंटा मां चंद्रघंटा को दूध और उससे बनी चीजों का भोग लगाएं और और इसी का दान भी करें। ऐसा करने से मां खुश होती हैं और सभी दुखों का नाश करती हैं। इसमें भी मां चंद्रघंटा को मखाने की खीर का भोग लगाना श्रेयकर माना गया है।

आशीर्वाद : साधक के समस्त पाप और बाधाएं नष्ट कर देती हैं।

16 अप्रैल- नवरात्रि चतुर्थी-
मां का चौथा (चतुर्थी) रूप-मां कूष्मांडा : इनके तेज और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रही हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्हीं की छाया है। मां की आठ भुजाएं हैं। अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं। दुर्गा सप्तशती के अनुसार देवी कूष्माण्डा इस चराचार जगत की अधिष्ठात्री हैं।

इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है।

मां की पूजा विधि : दुर्गा पूजा के चौथे दिन माता कूष्माण्डा की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए। दुर्गा पूजा के चौथे दिन देवी कूष्माण्डा की पूजा का विधान उसी प्रकार है जिस प्रकार शक्ति अन्य रुपों को पूजन किया गया है।

इस दिन भी सर्वप्रथम कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करनी चाहिए। तत्पश्चात माता के साथ अन्य देवी देवताओं की पूजा करनी चाहिए, इनकी पूजा के पश्चात देवी कूष्माण्डा की पूजा करनी चाहिए।

पूजा की विधि शुरू करने से पूर्व हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम करना चाहिए तथा पवित्र मन से देवी का ध्यान करते हुए “सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च. दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे.”नामक मंत्र का जाप करना चाहिए।

विशेष मंत्र – सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च | दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ||

मां का भोग : मालपुए का भोग लगाएं।

आशीर्वाद: मां कूष्मांडा अत्यल्प सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली हैं। इनकी उपासना से सिद्धियों में निधियों को प्राप्त कर समस्त रोग-शोक दूर होकर आयु-यश में वृद्धि होती है। साथ ही मां कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधियों-व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है।

17 अप्रैल- नवरात्रि पंचमी-
देवी मां का पांचवा (पंचमी) रूप-मां स्कंदमाता : स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं। इनका वर्ण पूर्णत: शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। सिंह भी इनका वाहन है।

मां की पूजा विधि : सबसे पहले चौकी (बाजोट) पर स्कंदमाता की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर कलश रखें। उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका (सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें।

इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा स्कंदमाता सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें।

विशेष मंत्र – सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी ।।

मां का भोग : मां स्कंदमाता पंचमी तिथि के दिन पूजा करके भगवती दुर्गा को केले का भोग लगाना चाहिए ।

आशीर्वाद : इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं, भक्त को मोक्ष मिलता है।

18 अप्रैल- नवरात्रि षष्ठी-
देवी मां का छठा (षष्ठी‌) रूप-मां कात्यायनी : नौ देवियों में कात्यायनी मां दुर्गा का छठा अवतार हैं। देवी का यह स्वरूप करुणामयी है। देवी पुराण के अनुसार कात्यायन ऋषि के घर उनकी पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण इन्हें कात्यायनी के नाम से जाना जाता है। मां कात्यायनी का शरीर सोने जैसा सुनहरा और चमकदार है। मां 4 भुजाधारी और सिंह पर सवार हैं। उन्होंने एक हाथ में तलवार और दूसरे हस्त में कमल का पुष्प धारण किया हुआ है। अन्य दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं।

मां की पूजा विधि : दुर्गा पूजा के छठे दिन भी सर्वप्रथम कलश व देवी कात्यायनी जी की पूजा कि जाती है. पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर देवी के मंत्र का ध्यान किया जाता है. देवी की पूजा के पश्चात महादेव और परम पिता की पूजा करनी चाहिए. श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ ही करनी चाहिए।

विशेष मंत्र – चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दूलवर वाहना।
कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनि।।

मां का भोग : इस दिन प्रसाद में मधु यानी शहद का प्रयोग करना चाहिए।

आशीर्वाद : इनकी उपासना भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं।

: विवाह नहीं हो रहा या फिर वैवाहिक जीवन में कुछ परेशानी है तो उसे शक्ति के इस स्वरूप की पूजा अवश्य करनी चाहिए।

19 अप्रैल- नवरात्रि सप्तमी-
देवी मां का सातवां (सप्तमी) रूप-मां कालरात्रि : मां दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। मां कालरात्रि के पूरे शरीर का रंग एक अंधकार की तरह है, इसलिये शरीर काला रहता है। इनके सिर के बाल हमेशा खुले रहते हैं।

गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रह्मांड के सदृश गोल हैं। इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें नि:सृत होती रहती हैं। मां की नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ (गदहा) है। ये ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं।

दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग (कटार) है। मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल ही देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम ‘शुभंकारी’ भी है। अत: इनसे भक्तों को किसी प्रकार भी भयभीत अथवा आतंकित होने की आवश्यकता नहीं है।

मां की पूजा विधि : सप्तमी पूजा के दिन तंत्र साधना करने वाले साधक आधी रात में देवी की तांत्रिक विधि से पूजा करते हैं तथा इस दिन मां की आंखें खुलती हैं। पूजा करने के बाद इस मंत्र से मां को ध्यान करना चाहिए-

एक वेधी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।
वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।
इसके बाद इनकी पूजा पूरी हो जाने के बाद शिव और ब्रह्मा जी की पूजा अवश्य करनी चाहिए फिर आरती कर प्रसाद ग्रहण करना चाहिए।

विशेष मंत्र – एक वेधी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।

वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।

मां का भोग : मां कालरात्रि को शहद का भोग लगाएं।

आशीर्वाद : दुश्मनों से जब आप घिर जायें और हर ओर विरोधी नजऱ आयें, तो ऐसे में आपको माता कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से हर तरह की शत्रुबाधा से मुक्ति मिल जाती है।

20 अप्रैल- नवरात्रि अष्टमी-
देवी मां का आठवां (अष्टमी) रूप-मां महागौरी : मां की वर्ण पूर्णत: गौरवर्ण है। इनके गौरता की उपमा शंख, चन्द्र और कुन्द के फूल से दी जाती है। महागौरी के समस्त वस्त्र तथा आभूषण आदि भी श्वेत हैं।

इनकी चार भुजाएं है तथा वाहन वृषभ (बैल) है। मां की मुद्रा अत्यन्त शांत है और ये अपने हाथों में डमरू, त्रिशूल धारण किए वर मुद्रा और अभय-मुद्रा धारिणी है।

मां की पूजा विधि : इनकी पूजा करने के लिए भक्त को नवरात्रा के आठवें दिन मां की प्रतिमा अथवा चित्र लेकर उसे लकड़ी की चौकी पर विराजमान करना चाहिए।

इसके पश्चात पंचोपचार कर पुष्पमाला अर्पण कर देसी घी का दीपक तथा धूपबत्ती जलानी चाहिए। मां के आगे प्रसाद निवेदन करने के बाद साधक अपने मन को महागौरी के ध्यान में लीन कर निम्न मंत्र का कम से कम 108 बार जप करना चाहिए: ॐ ऎं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ॐ महागौरी देव्यै नम:।।

विशेष मंत्र – श्वेते वृषे समरूढा श्वेताम्बराधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।

मां का भोग : प्रसाद दूध का ही होना चाहिए।

आशीर्वाद : इस मंत्र से मां अत्यन्त प्रसन्न होती है तथा भक्त की समस्त इच्छाएं पूर्ण करती हैं।

21 अप्रैल- नवरात्रि नवमी-
मां का नौवां (नवमी) रूप-मां सिद्धिदात्री/रामनवमी : मां सिद्धिदात्री कमल के फूल पर विराजमान हैं और उनकी चार भुजाएँ हैं। मां सिद्धिदात्री की सवारी सिंह हैं। देवी ने सिद्धिदात्री का यह रूप भक्तों पर अनुकम्पा बरसाने के लिए धारण किया है। देवता, ऋषि-मुनि, असुर, नाग, मनुष्य सभी मां के भक्त हैं।

राम नवमी का पर्व : इसके अलावा हर साल चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को राम नवमी मनाई जाती है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी दिन भगवान राम को माता कौशल्या ने जन्म दिया था। भगवान श्री राम का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में हुआ था।

राम नवमी को देशभर में बड़े ही धूम- धाम से मनाया जाता है। इस दिन भगवान राम की विशेष पूजा- अर्चना की जाती है। ऐसे में इस बार राम नवमी का पर्व 21 अप्रैल 2021 को मनाया जाए।

देवी मां की पूजा विधि : सबसे पहले मां सिद्धिदात्री के समक्ष दीपक जलाएं। अब मां को लाल रंग के नौ फूल अर्पित करें। कमल का फूल हो तो बेहतर है। इन फूलों को लाल रंग के वस्त्र में लपेटकर रखना चाहिए। इसके बाद माता को नौ तरह के खाद्य पदार्थ चढ़ाएं। अपने आसपास के लोगों में प्रसाद बांटे। साथ ही गरीबों को भोजन कराएं। इसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण कर लें।

विशेष मंत्र : या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

: “ॐ सिद्धिदात्री देव्यै नमः”।।

मां का भोग : विभिन्न प्रकार के अनाजों का भोग लगाएं।

आशीर्वाद : हर प्रकार की सिद्धि प्रदान करतीं हैं।

राम नवमी की पूजा विधि…
: इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनने के बाद अपने घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
: अगर आप व्रत कर सकते हैं, तो इस दिन व्रत भी रखें।
: स्वयं के स्नान के बाद घर के मंदिर में देवी- देवताओं को स्नान कराकर साफ स्वच्छ वस्त्र पहनाएं।
: भगवान राम की प्रतिमा या तस्वीर पर तुलसी का पत्ता और फूल अर्पित करें। साथ ही भगवान को फल भी अर्पित करें।
: भगवान को अपनी इच्छानुसार सात्विक चीजों का भोग लगाएं।
: इस पावन दिन भगवान राम की आरती भी अवश्य करें। साथ ही आप इस दिन विशेष रूप से रामचरितमानस, रामायण, श्री राम स्तुति और रामरक्षास्तोत्र का पाठ भी कर सकते हैं।

भगवान के नाम का जप करने का बहुत अधिक महत्व होता है। आप श्री राम जय राम जय जय राम या सिया राम जय राम जय जय राम का जप भी कर सकते हैं। राम नाम के जप में कोई विशेष नियम नहीं होता है, आप कहीं भी शुद्ध स्थान पर कभी भी राम नाम का जप कर सकते हैं।

Chaitra Navratri 2021 Dates – चैत्र नवरात्रि 2021 तिथियां…
नवरात्रि का त्यौहार साल में चार बार मनाया जाता है, जिसमें चैत्र और शारदीय नवरात्रि मुख्य माने जाते हैं। वहीं माघ और आषाढ़ माह में गुप्त नवरात्रि मनाई जाती हैैं। नवरात्रि पर मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना की जाती है।

वहीं नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना भी की जाती है। नवरात्रि पर मां दुर्गा के नौ रूप की आराधना की जाती है। इस वर्ष चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ 13 अप्रैल से हो रहा है और समापन 22 अप्रैल को होगा। नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है।

Date wise name of 9 days : 9 दिनों की तिथि वार नाम व देवी स्वरूप
13 अप्रैल 2021- मंगलवार – नवरात्रि प्रतिपदा- मां शैलपुत्री पूजा और घटस्थापना
14 अप्रैल 2021- बुधवार – नवरात्रि द्वितीया- मां ब्रह्मचारिणी पूजा
15 अप्रैल 2021- बृहस्पतिवार – नवरात्रि तृतीया- मां चंद्रघंटा पूजा
16 अप्रैल 2021- शुक्रवार – नवरात्रि चतुर्थी- मांकुष्मांडा पूजा
17 अप्रैल 2021- शनिवार – नवरात्रि पंचमी- मां स्कंदमाता पूजा
18 अप्रैल 2021- रविवार – नवरात्रि षष्ठी- मां कात्यायनी पूजा
19 अप्रैल 2021- सोमवार – नवरात्रि सप्तमी- मां कालरात्रि पूजा
20 अप्रैल 2021- मंगलवार – नवरात्रि अष्टमी- मां महागौरी
21 अप्रैल 2021- बुधवार – नवरात्रि नवमी- मां सिद्धिदात्री , रामनवमी









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